क्षय रोग अर्थात टीबी एक पुरानी बीमारी है और भारत में यह एंडेमिक है। यह संक्रामक रोगों में मृत्यु का एक प्रमुख कारण है और एचआईवी से पीड़ित लोगों में बीमारी और मृत्यु का सबसे महत्वपूर्ण कारण है। इसलिए इसके उपचार के साथ-साथ बचाव के उपायों के बारे में जानना भी बहुत जरूरी है।
टीबी एक संक्रामक रोग (tuberculosis in hindi) है, जो मायकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस (Mycobacterium tuberculosis) के कारण होता है। यह मुख्य रूप से फेफड़ों (फेफड़ों की टीबी) को प्रभावित करता है। पर वास्तविकता यह है कि टीबी शरीर के किसी भी अंग को प्रभावित कर सकती है। जैसे लसिका ग्रंथियां, पाचन तंत्र, यकृत, हृदय, आंखें, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र, मांसपेशियां, जननांग प्रणाली, जो बांझपन का कारण बन सकती है आदि।
कभी-कभी, टीबी रक्त के माध्यम से सभी अंगों को प्रभावित कर सकती है और इसे Distributed TB या Extrapulmonary TB कहा जाता है। इम्युनिटी कमजोर होते ही यह किसी भी व्यक्ति में उभर सकती है। इसलिए टीबी से बचने (tuberculosis in hindi) के लिए जरूरी है कि आप अपनी इम्युनिटी का ख्याल रखें। टीबी कैसे फैलती है और इसके जोखिम से कैसे बचना है बता रही हैं डॉ. माला कनेरिया, सलाहकार, संक्रामक रोग, जसलोक अस्पताल और अनुसंधान केंद्र।
एक समय था जब COVID-19 महामारी के दौरान, COVID ने मृत्यु दर के मामले में क्षय रोग को पीछे छोड़ दिया था। मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट टीबी, प्री XDR और XDR टीबी एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट है, जिसे तुरंत ध्यान देने की आवश्यकता है।
एक बड़ी आबादी है टीबी के जाेखिम में (tuberculosis in hindi)
डॉ माला कहती हैं, “कई देशों में बच्चों को जन्म के समय BCG वैक्सीन दी जाती है, ताकि वे क्षय रोग से बच सकें। भारत में टीबी एंडेमिक (tuberculosis in hindi) होने के कारण, एक बड़ी आबादी इससे संक्रमित है। मगर उनमें लक्षण नहीं दिखते, क्योंकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता संक्रमण को नियंत्रित कर देती है। इसे लेटेंट ट्यूबरकुलोसिस (latent tb infection) कहा जाता है।
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जब रोग प्रतिरोधक क्षमता किसी कारणवश घट जाती है, जैसे अनियंत्रित मधुमेह, लंबे समय तक स्टेरॉयड, अन्य इम्यूनोसप्रेसिव दवाइयां, शराब, कैंसर, कीमोथेरेपी दवाइयां), तब लेटेंट टीबी का फिर से सक्रिय हो जाती है और इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं।”

सबसे अधिक कॉमन है फेफड़ों की टीबी
फेफड़ों की टीबी हवा के माध्यम से फैलती है जब संक्रमित व्यक्ति खांसता है, छींकता है या अपनी बलगम को थूकता है। फेफड़ों की टीबी संक्रामक होती है और इसके फैलने का खतरा संपर्क की गंभीरता पर निर्भर करता है।
निकट परिवार के सदस्य और अन्य करीबी संपर्क में रहने वाले लोग सबसे अधिक जोखिम में होते हैं। टीबी के फैलाव को मास्क पहनने, दूरी बनाए रखने, खांसते समय उचित शिष्टाचार अपनाने और सबसे महत्वपूर्ण बात, सही उपचार लेने से रोका जा सकता है।
एचआईवी रोगियों को होता है एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी का जोखिम
डॉ माला कहती हैं, “एक्स्ट्रापल्मोनरी टीबी (जो फेफड़ों के अलावा अन्य अंगों को प्रभावित करती है) संक्रामक नहीं होती। एचआईवी से पीड़ित व्यक्तियों को इस टीबी के होने का जोखिम बहुत अधिक होता है। साथ ही उनमें इसके गंभीर लक्षण और हाई रिस्क रहता है। अमूमन एचआईवी रोगियों में कई और संक्रमण भी होते हैं, जिसके लिए वे तरह-तरह की दवाएं ले रहे हाेते हैं। जिसके कारण टीबी का उपचार और भी अधिक चुनौतीपूर्ण हो जाता है।”
“टीबी के लक्षण उस अंग प्रणाली पर निर्भर करते हैं, जो प्रभावित होती है। सामान्य लक्षणों में शाम को हल्का बुखार, खांसी, बलगम में खून, वजन में कमी, सांस लेने में कठिनाई आदि शामिल हैं।
सबसे खतरनाक प्रकार की टीबी मस्तिष्क की टीबी है। यह मैनिंजाइटिस, ट्यूबरकुलोमा आदि का कारण बन सकती है। इससे मानसिक स्थिति में बदलाव, दौरे, यहां तक कि पक्षाघात भी हो सकता है। कभी-कभी, केवल हल्का बुखार ही होता है, जिससे निदान में कठिनाई हो सकती है।”
कैसे किया जाता है फेफड़ों की टीबी का निदान
इसके लिए रेडियोलॉजी की मदद ली जाती है। जिसमें –
- सीने का एक्स-रे या सीटी स्कैन और अन्य परीक्षण उस स्थान के अनुसार किए जा सकते हैं, जैसे मस्तिष्क की सीटी या एमआरआई, पेट की सीटी और कभी-कभी पीईटी सीटी।
- सूक्ष्मजीवविज्ञान द्वारा निदान, जैसे जीन एक्सपर्ट और AFB कल्चर।
- निकाले गए नमूनों की पैथोलॉजी, जैसे लसिका ग्रंथि, ऊतक आदि, जो ग्रैन्युलोमा (granulomas) दिखाती है। ग्रैन्युलोमा श्वेत रक्त कोशिकाओं का एक समूह है, जो संक्रमण या सूजन के कारण बन जाता है। यह गांठ की तरह दिखाई देता है।
- ज्यादातर माइक्रोबायोलॉजिकल या पैथोलॉजिकल रूप से टीबी के संक्रमण की पहचान की जाती है। पर कई बार यह संभव नहीं हो पाता और टीबी का उपचार अनुमानित रूप से दिया जाता है।
कैसे किया जाता है टीबी का उपचार
टीबी दवाइयां लंबी अवधि के लिए दी जानी चाहिए, जैसे 6 महीने से 12 महीने तक और कभी-कभी MDR और XDR टीबी के मामलों में इससे भी अधिक समय तक दी जाती हैं। किसी के लिए भी इतनी लंबी अवधि तक बिना भूले दवा लेना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
इन दवाइयों के कारण यकृत, गुर्दे आदि पर कई प्रतिकूल प्रभाव हो सकते हैं और यह समस्या कुपोषित रोगियों और उन लोगों में और बढ़ सकती है जो शराब, मधुमेह और वायरल हेपेटाइटिस जैसी अन्य लिवर संबंधी समस्याएं हों।

उपचार से ज्यादा जरूरी है रोकथाम (How to avoid the risk of Tuberculosis)
1 जागरुक रहें
इलाज से बचाव हमेशा बेहतर होता है। इसलिए ज्यादातर डॉक्टर और स्वास्थ्य विभाग टीबी से बचाव के उपाय अपनाने को प्रोत्साहित करते हैं। रोकथाम इस घातक संक्रमण के खिलाफ हमारे पास सबसे महत्वपूर्ण अस्त्र है।
2 स्वच्छता नियमों का पालन करें
समय पर निदान, स्वच्छता के नियमों का नियमित पालन, और समय पर और निर्धारित अवधि तक दवाइयां लेना अत्यंत आवश्यक है। भले ही इसके कुछ प्रतिकूल प्रभाव हो।
3 सार्वजनिक स्थानों पर मास्क पहनें
उचित पोषण, शराब का सेवन बंद करना उपचार की सफलता के लिए महत्वपूर्ण हैं। सार्वजनिक स्थानों या किसी भी संक्रमित व्यक्ति के आसपास होने पर मास्क पहनना सबसे ज्यादा जरूरी है। साथ ही यह भी सुनिश्चित करें कि आपके आस-पास के लोग संक्रमित न हों।
4 हेल्थ केयर प्रोवाइडर की सलाह मानें
कभी-कभी, अनुमानित इम्यूनोसप्रेशन (tuberculosis in hindi) की अवधि से पहले टीबी दवाइयों के साथ रासायनिक रोधी चिकित्सा शुरू करनी पड़ती है। अगर आपका स्वास्थ्य विशेषज्ञ इसकी सलाह दे रहा है, तो इसे नजरंदाज न करें।
5 इम्युनिटी पर ध्यान दें
टीबी का संक्रमण भारत में ज्यादातर (tuberculosis in hindi) लोगों में मौजूद होता है। मगर जब आपकी इम्युनिटी मजबूत होती है, तो यह दबा रहता है। इसलिए जरूरी है कि आप अपनी और अपने परिवार की इम्युनिटी पर सबसे ज्यादा ध्यान दें। जंक और प्रोसेस्ड फूड की बजाए उन खाद्य पदार्थों को आहार में शामिल करें जो इम्युनिटी बढ़ाने वाले हों।
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