मानसिक तनाव, भागदौड़ भरी जिंदगी और काम के प्रेशर के बीच डिप्रेशन (Depression) एक साइलेंट किलर बन चुका है, जो धीरे-धीरे मानसिक और शारीरिक सेहत को खोखला कर रहा है. इसे नजरअंदाज करने से अनिद्रा, हार्ट डिजीज जैसे गंभीर खतरे पैदा हो सकते हैं.
पुरुष हो या महिला कोई भी डिप्रेशन की चपेट में आ सकता है. आइए जानते हैं आखिर डिप्रेशन इतना खतरनाक होता जा रहा है, इसका खतरा सबसे ज्यादा किसे है…
साल 2024 के डेटा के अनुसार, पूरी दुनिया में करीब 26.4 करोड़ लोग डिप्रेशन से प्रभावित हैं. नेशनल मेंटल हेल्थ सर्वे का आंकड़ा कहता है कि भारत में हर 20 में से एक भारतीय डिप्रेशन की चपेट में हैं. कोरोना के बाद इसमें ज्यादा तेजी आई है.
किंग्स कॉलेज लंदन के एक्सपर्ट्स की स्टडी बताती है कि मेंटल हेल्थ की समस्याएं किसी को भी हो सकती हैं, लेकिन महिलाओं में इसका ज्यादा असर देखा गया है. इसके अनुसार, लड़कों की तुलना में लड़कियों में डिप्रेशन दोगुना होता है. 2024 में इसी से जुड़ी एक अन्य रिपोर्ट में सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) ने बताया कि करीब 53% किशोर लड़कियों ने उदासी या निराशा जैसे डिप्रेशन के लक्षण देखे गए हैं, जबकि ऐसे लड़कों का आंकड़ा सिर्फ 28% था.
इस अध्ययन में 15 साल की 75 लड़कियां और 75 लड़कों को शामिल किया गया. शोधकर्तांओं ने पाया कि जिन लड़कियों में न्यूरोप्रोटेक्टिव कंपाउंड्स का लेवलर कम था, उनमें डिप्रेशन होने का खतरा भी ज्यादा था. जिनमें इसका लेवल सामान्य था, उनका मेंटल हेल्थ ज्यादा बेहतर पाया गया. हालांकि, लड़कों में इसका खास अंतर नहीं मिला.
न्यूरोप्रोटेक्टिव कंपाउंड्स न्यूरॉन्स को अलग-अलग कारणों से होने वाले नुकसान से बचाते हैं. ये ब्रेन की कोशिकाओं की भी सुरक्षा करते हैं. इससे अल्जाइमर और पार्किंसंस जैसी न्यूरोडीजेनेरेटिव बीमारियों का खतरा कम हो सकता है. किंग्स कॉलेज लंदन में शोधकर्ता डॉ. नागमेह निक्खेस्लात ने बताया कि ब्रेन में सूजन को कम करने या न्यूरोप्रोटेक्टिव के प्रोडक्शन को बढ़ावा देकर डिप्रेशन को गंभीर रूप लेने से रोक सकते हैं.
Published at : 02 Apr 2025 08:07 PM (IST)
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