ज्यादा उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेने वाले पार्किंसंस रोग को प्रोगेसिव न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर कहा जाता है। ऐसी स्थिति में शरीर में डोपामाइन हार्मोन का स्तर प्रभावित होने से मांसपेशियां का कार्य बाधित होने लगता हैं। आनुवंशिकता के अलावा उम्र इस समस्या का एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है।
शरीर को स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक स्वास्थ्य के साथ मानसिक स्वास्थ्य को उचित बनाए रखना भी आवश्यक है। दरअसल, मस्तिष्क हमारे पूरे शरीर की फंक्शनिंग को सिग्नल प्रदान करता है, मगर उम्र के साथ ब्रेन की मांसपेशियों के संकुचन से शरीर को नुकसान का सामना करना पड़ता है। इसके चलते लोगों में बोलने, चलने फिरने और तनाव से जुड़ी समस्याएं बढ़ने लगती है। नर्व संबधी इस समस्या को पार्किंसंस रोग के नाम से जाना जाता है। जानते हैं पार्किंसंस रोग के कारण (Parkinson’s disease risk) और उससे बचाव के उपाय भी।
इस स्थिति में व्यक्ति चलने फिरने, नींद, बोलने में कंपन और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पार्किंसन रोग के परिणामस्वरूप विकलांगता की उच्च दर और देखभाल की आवश्यकता होती है। पीडी से पीड़ित कई लोगों में डिमेंशिया के लक्षण भी विकसित होने लगते है। हांलाकि ये बीमारी आमतौर पर वृद्ध लोगों में होती है, लेकिन युवा लोग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं। वहीं महिलाओं की तुलना में पुरुष इससे अधिक प्रभावित होते हैं।
पार्किंसंस डिजीज डे 2025 (Parkinson’s Disease Day 2025)
दुनिया भर में 11 अप्रैल को पार्किंसंस डिजीज डे (Parkinson’s disease day) के रूप में मनया जाता है। इस दिन जेम्स पार्किंसन के शेकिंग पाल्सी पर निबंध सन् 1817 को प्रकाशित हुआ था। उस समय पहली बार पार्किंसन (Parkinson’s disease risk) को एक चिकित्सा स्थिति के रूप में मान्यता दी गई। अब हर 11 अप्रैल को विश्व पार्किंसन दिवस के रूप में उनके जन्मदिन को मनाते हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पिछले 25 वर्षों में पीडी का जोखिम दोगुना हो गया है। 2019 में जहां पार्किंसस से 85 मिलियन से अधिक लोग पीड़ित हैं। वहीं 2019 में 5,8 मिलियन मामले पाए गए जो 2000 से 81 फीसदी ज्यादा हैं। शोध के अनुसार साल 2000 से अब तक मामलों में 100 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है।

पार्किंसंस रोग किसे कहते हैं (What is Parkinson’s disease)
बीएलके मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल, दिल्ली में एसोसिएट डायरेक्टर न्यूरोलॉजी और हेड न्यूरोवास्कुलर इंटरवेंशन डॉ विनीत बांगा ने इस बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि ज्यादा उम्र के लोगों को अपनी चपेट में लेने वाले पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease risk) को प्रोगेसिव न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर कहा जाता है। ऐसी स्थिति में शरीर में डोपामाइन हार्मोन का स्तर प्रभावित होने से मांसपेशियां का कार्य बाधित होने लगता हैं। दरअसल, मस्तिष्क की सबस्टेंशिया नाइग्रा में इसका स्त्राव होने लगता है। जब वहां सेल्स 60 से 80 फीसदी तक डैमेज होने लगते हैं, तो व्यक्ति पार्किंसंस रोग का शिकार हो जाता हैं।
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पार्किंसंस रोग कैसे फैलता है (How Parkinson’s disease spread)
ये पार्किंसंस रोग (Parkinson’s disease risk) एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैल सकता क्योंकि ये संक्रामक नहीं है। ये न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार किसी संक्रामक एजेंट के संपर्क में आने की जगह आनुवंशिक और पर्यावरणीय कारकों से बढ़ने लगता है।
डोपामाइन एक प्रकार का न्यूरोट्रांसमीटर है जो बॉडी की मूवमेंट के लिए आवश्यक है। डोपामाइन के स्तर में कमी आने पर पार्किंसंस से पीड़ित लोगों में कंपन, कठोरता, गति में कमी और संतुलन और समन्वय में कमी का अनुभव होता है। आनुवंशिकता के अलावा उम्र एक महत्वपूर्ण जोखिम कारक है। अधिकतर मामलों में 60 साल के बाद इस समस्या का जोखिम बढ़ जाता है।

पार्किंसंस के जोखिम कारक (Risk factors of Parkinson’s disease)
1. आनुवंशिकता
10 से 15 फीसदी मामलों में फैमिली हिस्ट्री को इस समस्या का जोखिम कारक माना जाता है। इसमें कई मामले फर्स्ट डिग्री या सेकण्ड डिग्री से प्रभावित होते हैं। लगभग 5 फीसदी मामले मेंडेलियन इनहेरिटेंस के माने जाते हैं। ज्यादातर मामले 65 की उम्र के बाद देखने को मिलते हैं। वहीं 30 और 40 की उम्र के लोगों में भी इस रोग के कई केसिज़ पाए जाते हैं ।
2. एनवायरमेंटल फैक्टर
कीटनाशकों, हर्बिसाइड्स और औद्योगिक रसायनों जैसे विषाक्त पदार्थों के संपर्क में आने से मस्तिष्क में ऑक्सीडेटिव तनाव, सूजन और माइटोकॉन्ड्रियल डिस्फंक्शन बढ़ने लगता है। ऐसे में पार्किंसंस का खतरा बढ़ने लगता है। इसके अलावा ऐसे लोग जो फार्मिंग से जुड़े हुए हैं। उनमें भी कीटनाशकों का प्रयोग समस्या का कारण साबित होता है।
3. बढ़ती उम्र
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ के अनुसार बढ़ती उम्र पार्किंसंस रोग के विकास के लिए सबसे बड़ा जोखिम कारक साबित होती है। इसकी एवरेज एज 60 है। वे लोग जो 50 की उम्र से इस समस्या ग्रस्त हो जाते हैं, तो उसे अर्ली ऑनसेट पार्किंसस कहा जाता है, जिसके ज्यादा मामले देखने को नहीं मिलते हैं ।

4. ऑटो इम्यून फैक्टर
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार रुमेटी गठिया, मधुमेह, अल्सरेटिव कोलाइटिस और अन्य ऑटो इम्यून डिज़ीज़ के चलते पार्किंसंस रोग का खतरा बढ़ जाता है। इसके तहत शरीर में मौजूद टी सेल्स जो इम्यून सिस्टम का हिस्सा है, वे ब्रेन सेल्स को क्षतिग्रस्त करने लगते हैं। ऐसे में पार्किंसस की समस्या बढ़ जाती है।
पार्किंसंस रोग के लक्षण किस तरह से बढ़ने लगते हैं (How increase the risk of parkinson’s disease)
1. तनाव
तनाव का बढ़ता स्तर पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों में कंपन और कठोरता को बढ़ा सकता है। माइंडफुलनेसए मेडिटेशन और रिलैक्सेशन एक्सरसाइज जैसी तनाव प्रबंधन तकनीकें नर्वस सिस्अम को शांत करके इन प्रभावों को कम करने में मदद करते हैं।
2. नींद की कमी
खराब नींद शरीर की प्राकृतिक लय को बाधित करती है। इससे पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों में थकान और मोटर सिंपटम खराब होने लगते हैं। पार्किंसंस के लक्षणों को प्रबंधित करने के लिए हेल्दी स्लीप की आदत को अपनाएं और डॉक्टर की मदद से नींद विकारों का समाधान करना भी महत्वपूर्ण है।
3. बीमारी या संक्रमण
कोई भी बीमारी या संक्रमण शरीर पर अतिरिक्त तनाव को बढ़ा सकती है, जिससे पार्किंसंस के लक्षण अस्थायी रूप से बिगड़ सकते हैं। संक्रमण से लड़ने के लिए शरीर में मौजूद इम्यून सिस्टम सूजन को बढ़ा सकता है, जिससे ब्रेन में डोपामाइन का स्तर प्रभावित होने लगता है। ऐसे में सतर्क रहने की आवश्यकता होती है।
4. पोषण की कमी
कुपोषण या निर्जलीकरण दवा के अवशोषण और समग्र स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, जिससे पार्किंसंस के लक्षण और भी खराब हो सकते हैं। पौष्टिक आहार समग्र स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद है, जो पार्किंसंस रोग की दवाओं की प्रभावशीलता को बढ़ा सकता है।

5. एक्टीविटी की कमी
शारीरिक गतिविधि की कमी मांसपेशियों में अकड़न और कमजोरी का कारण साबित होती है। नियमित व्यायाम और स्ट्रेचिंग से गतिशीलता और संतुलन में सुधार आने लगता है। शारीरिक गतिविधि में शामिल होने से एंडोर्फिन का स्राव भी बढ़ता है, जो पार्किंसंस रोग से पीड़ित लोगों में अवसाद और चिंता के लक्षणों को कम करने में मदद करता है।
पार्किंसंस रोग से कैसे करें अपना बचाव
1. वर्कआउट है ज़रूरी
नियमित रूप से व्यायाम करने से शरीर में ब्लड का सर्कुलेशन बढ़ने लगता है। इससे शरीर की मोबिलिटी बनी रहती है। एरोबिक्स, कार्डियो, वॉक, जॉगिंग और योग को अपने रूटीन में शामिल कीं। इससे शरीर की संतुलन उचित रहता है।
2. हेल्दी मील्स लें
आहार में प्रोटीन, कैलिशयम, फाइबर और विटामिन व मिनरल को शामिल करें। इसके अलावा मौसमी फलों और सब्जियों का सेवन करें। इसके अलावा भरपूर मात्रा में पानी पीएं और शरीर को हाइड्रेटेड रखने का भी प्रयास करें।
3. पर्याप्त नींद लें
थकान को दूर करने के लिए शरीर का ख्याल रखें और इसके लिए नीं को प्राथमिकता दें। रात में 7 से 9 घंटे की पर्याप्त नींद लें।

4. तनाव से बचें
मानसिक स्वास्थ्य को उचित बनाए रखने के लिए तनाव लेने से बचें। इसके लिए खुद को व्यस्त रखने का प्रयास करें। इसके अलावा मेडिटेशन की ीी मदद ली जा सकती है।