पारीवारिक ढांचा आज भी उस अन्यायपूर्ण मानसिकता को मर्यादा माने हुए है जिसमें एक को घर की जिम्मेदारियां संभालनी हैं और दूसरे को उन पर आधिपत्य का अधिकार है। यूएन वीमेन के आंकड़े बताते हैं कि दुनिया भर में हर रोज 140 महिलाएं अपने ही पार्टनर के हाथों मारी जाती हैं।
अभी हाल ही में सोशल मीडिया पर एक रील वायरल हो रही थी। जिसमें महीनों बाद पति घर आता है। पत्नी के अलावा सभी को उसके आने की सूचना है। पति को महीनों बाद अचानक घर आया देख कर वह महिला हैरान रह जाती है। अगले ही पल उसके आंसू छलक आते हैं और वह भरी हुई आंखों के साथ कमरे से बाहर निकल आती है। उस छोटे से कमरे में और कमरे के बाहर कई लोग मौजूद हैं। वह स्त्री अब भी दीवार में मुंह छुपाए रो रही है, मगर महीनाें बाद लौटा वह पति उसे गले लगाना तो दूर, कंधे सहलाने में भी सकुचा रहा है। इस रील को ‘भारतीय मर्यादा’ दर्शाने वाली वीडियो के साथ साझा किया गया था। जबकि भारतीय ‘मर्यादा’ की असलियत यह है कि हर दिन लगभग 140 महिलाएं और लड़कियां अपने पार्टनर (Relationship stress) या घरेलू सदस्य के हाथों मार दी जाती हैं।
खतरनाक है घरेलू हिंसा के आंकड़े (Relationship stress and domestic violance)
यूएन वीमेन एंड यूएन ऑफिस ऑफ ड्रग्स एंड क्राइम (UN Women and the U.N. Office of Drugs and Crime) के आंकड़े कहते हैं कि ‘घर’ महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक जगह है। जहां उनकी जान भी जा सकती है। पुरुषों के मुकाबले अपने जीवनसाथी अथवा यौन साथी के हाथों मारी जाने वाली महिलाओं की संख्या दुनिया भर में दस गुणा से भी अधिक है। भारत से लेकर अमेरिका और यूरोप तक में ये आंकड़े लगभग एक जैसे ही हैं।
2022 में जहां 48800 महिलाएं घरेलू हिंसा में मारी गईं, वहीं 2023 में यह आंकड़े बढ़कर 51100 तक पहुंच गए। 2024 और 2025 के आंकड़े अभी आने बाकी हैं, मगर अंदाजा लगाया जा सकता है। बिग फैट इंडियन वेडिंग जितनी सुंदर अलबम में लगती हैं, उनकी हकीकत उतनी ही स्याह है। एक असंतुलन और अन्याय को पारंपरिक मर्यादा से सजाए हुए रखने वाला यह रिश्ता महिलाओं के लिए तनाव भरा साबित होता है।

सेल्फ केयर बनाम परिवार की मर्यादा (Self care vs family responsibilities)
सीएमआरआई हॉस्पिटल में सीनियर साइकेट्रिस्ट और साइकोथेरेपिस्ट राज्यश्री बंद्योपाध्याय कहती हैं, “कई संस्कृतियों में, जिनमें भारतीय संस्कृति भी शामिल है, महिलाओं को यह सोचने के लिए प्रेरित किया गया है कि उनके लिए त्याग, बलिदान और दूसरों की देखभाल अपनी देखभाल (Self care) से अधिक महत्वपूर्ण है।
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एक स्वस्थ संबंध जीवन में अतिरिक्त तनाव का कारण नहीं बनना चाहिए। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि संबंध खराब हो जातें हैं और यह किसी महिला के मानसिक स्वास्थ्य, आत्मसम्मान और कार्यक्षमता को बुरी तरह से प्रभावित करता है।
महिलाओं को बार-बार यह याद दिलाया जाता है कि अगर रिश्ता बिगड़ रहा है, तो इसमें उनकी ही गलती है। यह आत्म-दोष (Self blaim) अक्सर इनकार (Denial) की भावना को जन्म देता है, जिससे भावनात्मक रूप से थकान (Emotional burnout) होता है और इस विषाक्त चक्र (Toxic circle) से बाहर निकलना बहुत कठिन हो जाता है।
रिलेशनशिप में तनाव पैदा करने वाले सामान्य कारण (Causes of Relationship stress)
राज्यश्री कहती हैं, “रिलेशनशिप में तनाव (Relationship stress) के कई कारण हो सकते हैं। मगर उन सभी के मूल में संवाद की कमी और वह अन्यायपूर्ण मानसिकता है, जिसमें स्त्री के लिए जिम्मेदारियां और पुरुष के लिए अधिकारों को न्यायसंगत माना गया है। पारीवारिक ढांचा बदल रहा है। वे अपने साथी पुरुष की ही तरह शिक्षित और स्किल्ड हैं। मगर ‘मर्यादा की मानसिकता’ बदल नहीं पा रही है। स्त्रियां बाहर निकल कर काम कर रहीं हैं, पैसा कमा रही हैं, उनका फोकस बदल रहा है। मगर ‘घर’ अब भी उनसे वही ‘अनुगामिनी’ वाले चरित्र की उम्मीद लगाए बैठा है। वास्तविकता और अपेक्षा के बीच का घर्षण रिश्तों को तनावपूर्ण (Relationship stress) बना रहा है।
इनमें संवाद की कमी (Poor communication), घरेलू जिम्मेदारियाें में साझेदारी (Domestic chores), बहुत ज्यादा साथ रहना या बहुत कम साथ रह पाना (Lack of togetherness), परिवार के बाकी सदस्यों की दखलंदाजी (Family interference), खर्च (Finance) , बहस (Argument), पूर्वाग्रह (Conditioning), बेवफाई (Fedality), सेक्स (Sex) ऐसे मुद्दे हैं जो रिश्ताें में तनाव (Relationship stress) का कारण बनते हैं। हर तनाव हिंसा तक नहीं पहुंचता, लेकिन दोनों ही पार्टनर्स के जीवन में जहर घोलने (Toxic relationship) लगता है। जिसका असर काम पर पड़ना भी स्वाभाविक है।

जब कोई रिश्ता जोड़-तोड़ भरा, भावनात्मक रूप से प्रताड़ित करने वाला, आत्मकेंद्रित, नियंत्रित करने वाला या विषाक्त (Toxic) होता है, तो यह लंबे समय तक चलने वाले तनाव और चिंता का कारण बन सकता है, जिससे अवसाद भी हो सकता है। अंततः, इसका प्रभाव ऑफिस में प्रदर्शन और रोजमर्रा की गतिविधियों पर भी दिखाई देने लगता है।”
क्या हो सकता है रिलेशनशिप स्ट्रेस से बाहर निकलने का उपाय (How to deal with relationship stress)
डिस्ट्रक्शन किसी के लिए भी फायदे का सौदा नहीं है। आप टॉक्सिक हैं या आपका पार्टनर, उसके नुकसान दोनों को ही उठाने पड़ेंगे। इसलिए बेहतर है कि समाधान के रास्ते खोजने पर काम किया जाए।
राज्यश्री कहती हैं, “तनाव से बाहर निकलना और अपनी शक्ति को फिर से हासिल करने का पहला कदम है—इस विषाक्तता को पहचानना, तनाव के स्रोतों को समझना और यह स्वीकार करना कि यह उनकी गलती नहीं है।
विषाक्त रिश्तों से निपटने के लिए भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional inteligence) विकसित करना, सीमाएं (Bounderies) तय करना और प्रोफेशनल सहायता लेना बहुत जरूरी है। चूंकि ऐसे आत्मकेंद्रित (Narcissist) या टॉक्सिक लोग शायद ही कभी थेरेपी में जाते है। इसलिए महिलाओं को अपनी मानसिक क्षमता को सुधारने के लिए थेरेपी और मनोवैज्ञानिक तरीकों पर ध्यान देना चाहिए।
दिल से नहीं दिमाग से काम लें (last word)
किसी भी फैसले, किसी भी बहस में भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देने के बजाय तर्कसंगत रूप से सोचना तनाव को कम करने में मदद करता है। दिल की बजाए दिमाग को ड्राइविंग सीट पर रखें ताकि जीवन को बेहतर बनाया जा सके। सही समय पर लिया गया प्रोफेशनल इंटरवेंशन महिलाओं को सशक्त बनाने, उनके जीवन पर उनका अपना नियंत्रण रखने, प्रोडक्टिविटी बढ़ाने और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में मदद कर सकता है।
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