कुष्ठ रोग की गिनती क्रोनिक डिज़ीज़ में की जाती है। ये रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्रे या माइकोबैक्टीरियम लेप्रोमैटोसिस बैक्टीरिया से फैलने लगता है। इसका प्रभाव दिमाग और रीढ़ की हड्डी समेत स्किन, आंखों, नाक व थ्रोट पर दिखने लगता है।
लेप्रोसी यानि कुष्ठ रोग एक ऐसे जीवाणु संक्रमण से फैलता होता है, जिससे शरीर पर सफेद दाग नज़र आने लगते है। इस रोग को लेकर लोगों के मन में ढ़ेरों सवाल उमड़ने लगते है, जिसके चलते समाज में कई मिथ्स फैले हुए है। हांलाकि बीते वर्षों की तुलना में तेज़ी से इसके मामलों में गिरावट देखने को मिली है। एक वक्त था जब इस रोग से ग्रस्त लोगों को हीन दृष्टि से देखा जाता था और उन्हें भेदभाव का सामना मगर बदलते वक्त के साथ लेगों में इसके प्रति जागरुकता बढ़ रही है। हर साल राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर वर्ल्ड लेप्रोसी डे मनाया जाता लगा। आइये वर्ल्ड लेप्रोसी डे (World Leprosy Day) पर एक्सपर्ट से जानते हैं इस रोग से जुड़े कुछ ज़रूरी सवालों के जवाब।
वर्ल्ड लेप्रोसी डे (World Leprosy Day) की शुरूआत साल 1954 में फ्रांसीसी पत्रकार राउल फोलेरेउ ने की थी। भारत में 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की डेथ एनिवर्सरी (Mahatma Gandhi death anniversary) पर इस दिवस को मनाया (Leprosy Day in India) जाता है और लोगों को इस रोग के बारे में जागरूक किया जाता है।
दरअसल, महात्मा गांधी की पुण्यतिथि यानि 30 जनवरी को 1955 में कुष्ठ रोग निवारण और जागरुकता के उद्देश्य को आधार बनाकर कुष्ठ रोग दिवस की शुरुआत की गई। कुष्टरोगियों के प्रति महात्मा गांधी का समर्पण और सेवा भाव दर्शाते इस दिवस का मकसद लोगों में इस रोग के प्रति जागरूक करना था। साल 2025 में विश्व कुष्ठ दिवस की थीम (World Leprosy Day theme) एकजुट हो जाओ, काम करो और कुष्ठ रोग को खत्म करो है।
प्रेस इनफॉर्मेशन ब्यूरो की रिपोर्ट के मुताबिक साल 2021 22 में लेप्रोसी के नए मरीजों की संख्या 75,394 थी। 2014.15 के मुकाबले इन मरीजों की संख्या 125,785 कम थी।
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गांधी जी ने कुष्ठ रोग को जड़ से खत्म करने और इस स्टीगमा यानि कंलक से लोगों को आज़ाद करवाने का विशेष समर्थन किया। उनका मानना था कि ये रोग लाइलाज नहीं है और इससे ग्रस्त लोगों को अलग नहीं रखना चाहिए, जिसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ने लगता है। महज 13 वर्ष की उम्र में वे पहली बार किसी कुष्ठ रोगी के संपर्क में आए थे। समय के साथ इस रोग के लिए गांधीजी के विचारों में बदलाव आता चला गया और उन्होंने प्राकृतिक उपचारों की अपेक्षा आधुनिक चिकित्सा का समर्थन किया।
कुष्ठ रोग की गिनती क्रोनिक डिज़ीज़ में की जाती है। ये रोग माइकोबैक्टीरियम लेप्रे या माइकोबैक्टीरियम लेप्रोमैटोसिस बैक्टीरिया से फैलने लगता है। इसका प्रभाव दिमाग और रीढ़ की हड्डी समेत स्किन, आंखों, नाक व थ्रोट पर दिखने लगता है।
वर्ल्ड हेल्थ आर्गेनाइजेशन के अनुसार भारत में कुष्ठ रोग की व्यापकता दर 2014 15 में प्रति 10,000 जनसंख्या पर 0.69 से घटकर 2021 22 में 0.45 हो गई। भारत 2027 तक खुद को लेप्रसी फ्री देश बनाने का लक्ष्य रखता है।
आमतौर पर लोगों के मन में कुष्ठ रोग को लेकर कई तरह के सवाल बने रहते है। इस बारे में अपोलो स्पेक्ट्रा हॉस्पिटल, जयपुर में कंसलटेंट जनरल फिजिशियन डॉ अंकित पटेल और आयुर्वेदिक एक्सपर्ट डॉ अंकुर तंवर बता रहे हैं कुष्ट रोग से जुड़े सवालों के जवाब।
यह जरूरी नहीं की हर सफेद दाग कुष्ठ रोग ही हो। सफेद दाग कई कारणों से हो सकते हैं, जैसे कि एक्जिमा या सोरायसिस, त्वचा की एलर्जी या संवेदनशीलता, विटामिन की कमी, त्वचा का संक्रमण। इसके अलावा जब आप डॉक्टर के पास जाते हैं तो ही आपको सही निदान और उपचार प्रदान हो सकता है। हालांकि यह कुष्ठ रोग के कारण भी हो सकता है परंतु इसके अन्य कारण भी होते हैं इसलिए डॉक्टर से परामर्श आवश्यक है।
इसका मतलब साफ है कि त्वचा पर बैक्टीरिया के कारण संक्रमण हुआ है। इस संक्रमण से त्वचा की नसों और अन्य अंगों को भी प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए समय रहते डॉक्टर से परामर्श करना अत्यंत आवश्यक है। अगर आपको त्वचा पर सफेद या गुलाबी रंग के दाग या घाव होते प्रतीत हो रहे हैं तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।
ऐसा बिल्कुल नहीं है। दरअसल, सफेद दाग की बीमारी छूने से नहीं फैलती है। ये बीमारी माइकोबैक्टीरियम लेप्रे नामक बैक्टीरिया के कारण होती है और ये बैक्टीरिया वायुजनित नहीं होता है। कई अन्य तरीकों से ये समस्या फैलती है, जैसे कि बैक्टीरिया के साथ सीधे संपर्क में आना, बैक्टीरिया से संक्रमित व्यक्ति के साथ लंबे समय तक रहना, बैक्टीरिया से संक्रमित व्यक्ति के साथ भोजन या पेय पदार्थ साझा करने से फैलती है। हालांकि ये जरूरी है कि आप कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्ति के साथ सावधानी से पेश आएं और उनके साथ संपर्क में आने से पहले अपने हाथों को अच्छी तरह से धो लें।
ये बीमारी कई अंगों को प्रभावित कर सकती है, जैसे कि त्वचा पर सफेद या गुलाबी रंग के दाग या घाव हो सकता है। इससे नसें भी प्रभावित होती हैं, उनमें सुन्नता, झुनझुनी और दर्द हो सकता है। इस समस्या का आंखों पर भी प्रभाव पड़ सकता है। इसमें दृष्टि में कमी या आंखों में दर्द हो सकता है। कुष्ठ रोग फेफड़ों को प्रभावित कर सकता है, जिससे सांस लेने में समस्या हो सकती है और हड्डियों पर भी प्रभाव पड़ सकता हैए इसमें हड्डियों में दर्द और कमजोरी हो सकती है।
नहीं, सफेद दाग छुआछूत की बीमारी नहीं है। ये एक संक्रामक बीमारी है जो माइकोबैक्टीरियम लेप्रे नामक बैक्टीरिया के कारण होती है, लेकिन यह छूने से नहीं फैलती है। हालांकि कुष्ठ रोग के बारे में गलत धारणाएं और भेदभाव के कारणए इसे अक्सर छुआछूत की बीमारी माना जाता है। लेकिन जरूरी है कि हम इस बीमारी के बारे में सही जानकारी प्राप्त करें और कुष्ठ रोग से पीड़ित व्यक्तियों के साथ सहानुभूति और समर्थन दिखाएं।
सफेद दाग यानि कुष्ठ रोग का इलाज एंटीबायोटिक दवाओं के साथ किया जा सकता है। ये इलाज आमतौर पर मल्टीड्रग थेरेपी यानि एमडीटी के रूप में दिया जाता है, जिसमें दो या तीन एंटीबायोटिक दवाएं शामिल होती हैं। इन दवाओं को आमतौर पर 6 महीने से लेकर 1 साल तक दिया जाता है।
इलाज की अवधि कुष्ठ रोग की गंभीरता और प्रकार पर निर्भर करती है। इसके अलावा कुष्ठ रोग के इलाज में त्वचा की देखभाल, नसों की देखभाल, मांसपेशियों की देखभाल, आंखों की देखभाल ही आवश्यक है। यह जरूरी है कि आप कुष्ठ रोग के इलाज के लिए एक योग्य डॉक्टर से संपर्क करें और उनके निर्देशों का पालन करें।
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