हर रंग का अपना अलग ही महत्व होता है और इन रंगों का हमारे जीवन पर भी गहरा प्रभाव होता है। ये रंग सिर्फ जिंदगी को ही कलरफुल नहीं बनाते, बल्कि ये हमारे मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं। तो चलिए जानते हैं, ये रंग हमारी मेंटल हेल्थ पर क्या असर डालते हैं।
जल्दी ही होली का त्योहार आने वाला है। इस त्योहार में रंगों की रौनक देखते ही बनती है। रंग-बिरंगे रंगों के साथ लोग होली का पर्व मनाते हैं और एक-दूसरे को रंगों से रंगकर अपनी खुशी जाहिर करते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं, इन रंगों का हमारी मेंटल हेल्थ से भी काफी गहरा कनेक्शन होता है। ये सिर्फ होली के त्योहार ही नहीं, बल्कि जिंदगी में भी काफी मायने रखते हैं और खासतौर पर इनका व्यक्ति की मेंटल हेल्थ (color psychology) पर काफी गहरा प्रभाव होता है।
लाल, पीला, हरा, गुलाबी जैसे कलर खुशी और पॉजिटिविटी देते हैं, इन रंगों से तनाव दूर होता है, जो आज के समय में कई तरह की बीमारियों की जड़ माना जाता है। रंग जिस तरह आपके आस-पास के माहौल को खुशनुमा बना देते हैं, उससे मूड भी अच्छा होता है और तनाव दूर होता है। आजकल लोग तनाव होने पर कलर थेरेपी (color psychology) का भी सहारा ले रहे हैं। तो चलिए जानते हैं, रंग हमारी मेंटल हेल्थ को कैसे प्रभावित करते हैं और कलर थैरिपी क्या है।
छत्रपति शिवाजी सुभारती हॉस्पिटल मेरठ की कंसल्टेंट साइकैट्रिस्ट डॉ. रितिका बताती हैं कि, फ्लोरेसेंट रंग अपके मूड और मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव डालते हैं। ये रंग अपके ब्रेन को रिलैक्स करते हैं लेकिन, अगर इन रंगों का उपयोग ज्यादा किया जाए, तो यह अपको तनावग्रस्त और चिंतित महसूस करा सकते हैं। इसलिए, फ्लोरेसेंट रंगों का उपयोग सावधानी से करना चाहिए। हमें अपने आसपास के वातावरण में संतुलन बनाने का प्रयास करना चाहिए।
अगर आप मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं का सामना कर रहे हैं, तो आपको डॉक्टर से परामर्श लेना चाहिए। वे आपको व्यक्तिगत सलाह और समर्थन प्रदान कर सकते हैं। इसके अलावा, प्राकृतिक रंगों का उपयोग करना, जैसे कि हरा, नीला, और पीला, हमारे मानसिक स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद हो सकता है। ये रंग हमें शांति और स्थिरता की भावना दे सकते हैं।
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कलर थैरेपी या क्रोमोथेरेपी में कलर की सहायता से उपचार किया जाता है। इससे आपकी फिजिकल हेल्थ और मेंटल हेल्थ से जुड़ी परेशानियों का इलाज किया जाता है। ये थैरेपी कलर और रोशनी के माध्यम से की जाती है।
रंगों के बीच रहने, रंगों के अलग-अलग तरह से इस्तेमाल से शरीर में हैप्पी हार्मोन्स (color psychology) रिलीज होते हैं, जो आपके दिमाग को रिलैक्स करते हैं और तनाव दूर करते हैं। दिमाग के शांत और खुश होने पर शरीर में भी पॉजिटिव असर होता है, जिससे प्रोडक्टिविटी बढ़ती है। इससे आपकी मेंटल और फिजिकल हेल्थ सुधरती है, जिसका असर आपके कार्यों पर भी साफ नजर आता है। खुश रहने से कई बीमारियां खुद ब खुद दूर भाग जाती हैं।
रंगों के बीच रहने से तनाव दूर होता है। इससे दिमाग रिलैक्स रहता है, जिसके चलते अन्य कई समस्याओं से भी राहत मिलती है। तनाव मोटापा, डायबिटीज जैसी समस्याओं का कारण बनता है। ऐसे में जब दिमाग में अन्य कोई चिंता नहीं रहती तो इन तमाम बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है। यही वजह है कि आज-कल कलर थैरिपी का चलन तेजी से बढ़ा है।
जिन लोगों को स्लीपिंग डिसऑर्डर है, उनके लिए भी कलर थेरेपी (color psychology) बेहद फायदेमंद हो सकती है। कलर्स से निकलने वाली रोशनी आपको शांति का अनुभव करवाती है। जिससे आपको अच्छी नींद आती है। इस लिए आप अपने बेडरूम में नीले या हरे जैसे रंगों को शामिल कर सकते हैं।
इससे अपका मन शांत और रिलैक्स होता है, जिसकी मदद से आप काम में अच्छे से फोकस कर पाते हैं। इसके लिए कलर थैरेपी बेहद फायदेमंद है। इसके साथ ही ये भूख बढ़ाने में भी मदद करता है। अगर आप लो फील कर रहे हैं और अपने काम में फोकस नहीं कर पा रहे हैं तो आप इसकी सहायता ले सकते हैं।
लाल रंग – ऊर्जा से भरपूर लाल रंग आपको लो फील नहीं होने देता है।
ये कलर अपको एनर्जी देने का काम करता है
नीला रंग – अपको मानसिक शांति देता है। स्लीपिंग डिसऑर्डर की परेशानी को भी सही करने में मदद करता है।
हरा रंग – अपको मानसिक शांति देने का काम करता है। ये तनाव को भी कम करता है, जिससे अपको नींद अच्छी आती है।
नारंगी कलर – आपको खुशी और एनर्जी को बढ़ाने का काम करता है इसके साथ ही तनाव के कारण न लग रही भूख को भी बढ़ाता है।
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