स्लो मेटाबॉलिज्म से ग्रस्त व्यक्ति को वेटगेज, रूखी त्वचा और मूड स्विंग की समस्या बनी रहती है। खानपान में लापरवाही और वर्कआउट की कमी इस समस्या को बढ़ा देते है। इन कारणों से बढ़ सकती है स्लो मेटाबॉलिज्म की समस्या।
चयापचय यानि मेटाबॉलिज्म आहार को ऊर्जा में बदलने की एक शारीरिक प्रक्रिया है। इससे न केवल वेटलॉस में मदद मिलती है बल्कि डाइजेशन, ब्लड सर्कुलेशन, ब्रीदिंग और टेम्परेचर रेगुलेशन में भी फायदेमंद सहायक साबित होता है। ऐसे में स्लो मेटाबॉलिज्म बॉडी फंक्शनिंग को कई प्रकार से प्रभावित करते लगता है। साथ ही कैलेरीज़ और शरीर में जमा फेट्स को भी बर्न करने में सक्षम नहीं हो पाता है। सबसे पहले जानते हैं स्लो मेटाबॉलिज्म (slow metabolism) क्या और उसके लक्षण।
स्लो मेटाबॉलिज्म क्या हैं (What is slow metabolism)
अकेडमी और एंड डायटीटिक्स के अनुसार हेल्थ कंडीशन, जेनेटिक्स और जीवनशैली सहित कई चीजें चयापचय की गति को निर्धारित करते हैं। स्लो मेटाबॉलिज्म का अर्थ है कि शरीर उतनी कैलोरी बर्न नहीं कर पाता है, जितनी आवश्यक है। इससे फूड क्रेविंग, शुष्क त्वचा, थकान और मूड स्विंग जैसे लक्षणों का सामना करना पड़ता हैं।
इस बारे में लाइफस्टाइल मैनेजमेंट कंसल्टेंट गीतिका बजाज बताती हैं कि धीमा मेटाबॉलिज्म (slow metabolism) उस स्थिति को कहते हैं, जिसमें शरीर धीमी गति से कैलोरी जलाता है और भोजन को ऊर्जा में परिवर्तित करने लगता है।
हांलाकि मेटाबॉलिक रेट में व्यक्तिगत भिन्नता बनी रहती है। स्लो मेटाबॉलिज्म से ग्रस्त व्यक्ति को वेटगेन, रूखी त्वचा और मूड स्विंग की समस्या बनी रहती है। खानपान में लापरवाही और वर्कआउट की कमी इस समस्या को बढ़ा देते है। सबसे पहले जानते हैं स्लो मेटाबॉलिज्म (slow metabolism) के संकेत।
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स्लो मेटाबॉलिज्म के संकेत (Signs of slow metabolism)
1. मूड स्विंग का बढ़ना
नेशनल लाइब्रेरी ऑफ मेडिसिन के अनुसार कभी-कभार मूड में उतार चढ़ाव आना पूरी तरह से सामान्य है। वहीं हर वक्त मूड स्विंग का सामना करना धीमे मेटाबॉलिज्म (slow metabolism) का संकेत है। हार्मोन में बदलाव धीमे मेटाबॉलिज्म को दर्शाता है। इससे कम ऊर्जा स्तर बना रहता है और चिड़चिड़ापन व निराशा जैसी भावनाओं का सामना करना पड़ता हैं।
2. थकान और कम ऊर्जा स्तर
स्लो मेटाबॉलिज्म के चलते दिनभर आलस्य और थकान बनी रहती है। दरअसल, शरीर आहार को कुशलता से ऊर्जा में परिवर्तित नहीं कर पाता है। इससे दैनिक गतिविधियों में आवश्यक ऊर्जा की कमी बनी रहती है। इससे कार्यक्षमता में भी गिरावट आने लगती है और दिनभर नींद के झोंके आने लगते हैं।
3. कोल्ड सेंसिटीविटी बढ़ना
कुछ लोगों को हर वक्त ठंड का सामना करना पड़ता है। ज़्यादा ठंड की शिकायत धीमे मेटाबॉलिज्म (slow metabolism) का संकेत हो सकता है। कम मेटाबॉलिक दर आपके शरीर की गर्मी पैदा करने की क्षमता को प्रभावित कर सकती है, जिससे लगातार ठंड का एहसास होता है। कोल्ड टेम्परेचर के प्रति अधिक संवेदनशीलता होती है।
4. वजन का बढ़ना
धीमे मेटाबॉलिज्म के सबसे मुख्य लक्षणों में से एक है वेटगेन का सामना करना। इस स्थिति के चलते हेल्दी मील्स और नियमित रूप से व्यायाम करने के बावजूद वजन कम करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। स्लो मेटाबॉलिज्म (slow metabolism) के चलते कम कैलोरी बर्न होती है, जिससे वजन बढ़ने लगता है।

5. कमज़ोर पाचनतंत्र
पाचन प्रक्रिया और चयापचय दर दोनों एक दूसरे से कनेक्टिड होती हैं। दरअसल, डाइजेशन भोजन को तोड़ने की प्रक्रिया में मदद करता है। चयापचय दर आहार को ऊर्जा में बदलने लगती है।कम चयापचय दर के चलते शरीर में कैलोरीज़ एकत्रित होने लगती हैं। इसके अलाव कब्ज, सूजन या दस्त जैसे असामान्य पाचन लक्षण नज़र आने लगते हैं।
6. क्रेविंग का बढ़ना
व्यक्ति को शुगरी और फैट्स से भरपूर उच्च खाद्य पदार्थों की क्रेविंग बनी रहती है, जो धीमी चयापचय दर (slow metabolism) का एक लक्षण है। पौष्टिक आहार की कमी शरीर की संरचना को प्रभावित करती है। इससे शरीर में लो मसल्स मास और हाई फैट मास बढ़ने लगता है। दरअसल, मेटाबॉलिज्म भोजन को ऊर्जा और पोषण में नहीं बदल पाता है, जिससे शरीर में एनर्जी की कमी बनी रहती है।
मेटाबॉलिज्म को इन टिप्स की मदद से करें बूस्ट (Tips to deal with slow metabolism)
1. स्ट्रेंथ ट्रेनिंग करें
नियमित रूप से वर्कआउट रूटीन में स्ट्रेंथ ट्रेनिंग शामिल करने से मांसपेशियों की ताकत बढ़ने लगती है। इसके अभ्यास से पेट की मांसपेशियों में खिंचाव बढ़न लगता है। मेटाबॉलिज्म बूस्ट होता है ओर शरीर में जमा कैलोरीज़ को बर्न करने में भी मदद मिलती है।

2. भरपूर नींद लें
नींद की कमी के चलते शरीर में र्काटसोल हार्मोन का स्तर बढ़ने लगता है, जो वेटगेन की समस्या को बढ़ाता है। ऐसे में शारीरिक और मानसिक तनाव को दूर करने के लिए 7 से 8 घंटे की नींद लें। इससे एपिटाइट नियंत्रित होता है और ब्लड शुगर को बढ़ने से रोका जा सकता है।
3. हाइड्रेटेड रहें
दिनभर में खूब पानी पिएं। इससे शरीर में निर्जलीकरण की समस्या हल होने लगती है और चयापचय दर बढ़ने लगती है। ऐसे में 8 से 10 गिलास पानी पीएं और शरीर को हाइड्रेटेड रखने का प्रयास करें।
4. प्रोटीन का सेवन करें
पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन का सेवन करने से क्रेविंग्स की समस्या हल होने लगती है। इससे चयापचय दर बढ़ने लगती है और एपिटाइम को भी नियंत्रित किया जा सकता है। साथ ही मसल्स की मज़बूती बढ़ाने में भी मददगार साबित होता है।

5. प्लांट बेस्ड खाद्य पदार्थ लें
इससे शरीर को फाइबर के अलावा विटामिन, मिनरल और फाइटोन्यूट्रिएंट्स की प्राप्ति होती है, जिससे डाइजेशन बूस्ट होता है और कैलोरीज़ की स्टोरेज से बचा जा सकता है। इससे गट माइक्रोबायोम को बढ़ावा मिलता है।